Psalms 119

परमेश्‍वर की व्यवस्था की श्रेष्ठता पर ध्यान

आलेफ



1क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं,
और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं!
2क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं,
और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं!

3फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गों में चलते हैं।
4तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं*,
कि हम उसे यत्न से माने।

5भला होता कि तेरी विधियों को मानने के लिये मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए!
6तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा,
और मैं लज्जित न हूँगा।

7जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूँगा।
मैं तेरी विधियों को मानूँगा:
मुझे पूरी रीति से न तज!

व्यवस्था को मानना

बेथ

8


9जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन का पालन करने से।
10मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ;
मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे!

11मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ।
12हे यहोवा, तू धन्य है;
मुझे अपनी विधियाँ सिखा!

13तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन, मैंने अपने मुँह से किया है।
14मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से,
मानो सब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूँ।

15मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा, और तेरे मार्गों की ओर दृष्टि रखूँगा।
मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा;
और तेरे वचन को न भूलूँगा।

व्यवस्था में आनन्द

गिमेल

16


17अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ, और तेरे वचन पर चलता रहूँ*।
18मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की
अद्भुत बातें देख सकूँ।

19मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ; अपनी आज्ञाओं को मुझसे छिपाए न रख!
20मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण
हर समय खेदित रहता है।

21तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं से भटके हुए हैं।
22मेरी नामधराई और अपमान दूर कर,
क्योंकि मैं तेरी चितौनियों को पकड़े हूँ।

23हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियों पर ध्यान करता रहा।
तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल
और मेरे मंत्री हैं।

व्यवस्था को मानने का संकल्प

दाल्थ

24


25मैं धूल में पड़ा हूँ; तू अपने वचन के अनुसार मुझ को जिला!
26मैंने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है;
तू मुझ को अपनी विधियाँ सिखा!

27अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा, तब मैं तेरे आश्चर्यकर्मों पर ध्यान करूँगा।
28मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है;
तू अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल!

29मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और कृपा करके अपनी व्यवस्था मुझे दे।
30मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है,
तेरे नियमों की ओर मैं चित्त लगाए रहता हूँ।

31मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ, हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे!
जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा,
तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग में दौड़ूँगा।

समझ के लिये प्रार्थना

हे

32


33हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूँगा।
34मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा
और पूर्ण मन से उस पर चलूँगा।

35अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्‍न हूँ।
36मेरे मन को लोभ की ओर नहीं,
अपनी चितौनियों ही की ओर फेर दे।

37मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे*; तू अपने मार्ग में मुझे जिला।
38तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है,
उसको अपने दास के निमित्त भी पूरा कर।

39जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं।
देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ;
अपने धर्म के कारण मुझ को जिला।

परमेश्‍वर की व्यवस्था पर भरोसा

वाव

40


41हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वादे के अनुसार, मुझ को भी मिले;
42तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा,
क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है।

43मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमों पर है।
44तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार,
सदा सर्वदा चलता रहूँगा;

45और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों की सुधि रखी है।
46और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा,
और लज्जित न हूँगा; (रोम.1:16)

47क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ, और मैं उनसे प्रीति रखता हूँ।
मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा
और तेरी विधियों पर ध्यान करूँगा।

परमेश्‍वर की व्यवस्था में आशा

ज़ैन

48


49जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तूने मुझे आशा दी है।
50मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है,
क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैंने जीवन पाया है।

51अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तो भी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा।
52हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके
शान्ति पाई है।

53जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं क्रोध से जलता हूँ।
54जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ,
मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं।

55हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया, और तेरी व्यवस्था पर चला हूँ।
यह मुझसे इस कारण हुआ,
कि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए था।

व्यवस्था के प्रति भक्ति

हेथ

56


57यहोवा मेरा भाग है; मैंने तेरे वचनों के अनुसार चलने का निश्चय किया है।
58मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है;
इसलिए अपने वादे के अनुसार मुझ पर दया कर।

59मैंने अपनी चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया।
60मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।

61मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला।
62तेरे धर्ममय नियमों के कारण
मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूँगा।

63जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं, उनका मैं संगी हूँ।
हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है;
तू मुझे अपनी विधियाँ सिखा!

व्यवस्था का महत्व

टेथ

64


65हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार अपने दास के संग भलाई की है।
66मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे,
क्योंकि मैंने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।

67उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ*।
68तू भला है, और भला करता भी है;
मुझे अपनी विधियाँ सिखा।

69अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूँगा।
70उनका मन मोटा हो गया है,
परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूँ।

71मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ।
तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये
हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है।

व्यवस्था का न्याय

योध

72


73तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूँ।
74तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे,
क्योंकि मैंने तेरे वचन पर आशा लगाई है।

75हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तूने अपने सच्चाई के अनुसार मुझे दुःख दिया है।
76मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे,
क्योंकि तूने अपने दास को ऐसा ही वादा दिया है।

77तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।
78अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है;
परन्तु मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा।

79जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियों को समझ लेंगे।
मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो,
ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पड़े।

छुटकारे के लिये प्रार्थना

क़ाफ

80


81मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है।
82मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है;
और मैं कहता हूँ कि तू मुझे कब शान्ति देगा?

83क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ, तो भी तेरी विधियों को नहीं भूला।
84तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं?
तू मेरे पीछे पड़े हुओं को दण्ड कब देगा?

85अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिये गड्ढे खोदे हैं।
86तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं;
वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पड़े हैं;
तू मेरी सहायता कर!

87वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैंने तेरे उपदेशों को नहीं छोड़ा।
अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला,
तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूँगा।

व्यवस्था में विश्वास

लामेध

88


89हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है।
90तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है;
तूने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिए वह बनी है।

91वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है।
92यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता,
तो मैं दुःख के समय नाश हो जाता*।

93मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तूने मुझे जिलाया है।
94मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर;
क्योंकि मैं तेरे उपदेशों की सुधि रखता हूँ।

95दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियों पर ध्यान करता हूँ।
मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है,
परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा और सीमा से परे है।

व्यवस्था के प्रति प्रेम

मीम

96


97आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।
98तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है,
क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं।

99मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियों पर लगा है।
100मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ,
क्योंकि मैं तेरे उपदेशों को पकड़े हुए हूँ।

101मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिससे मैं तेरे वचन के अनुसार चलूँ।
102मैं तेरे नियमों से नहीं हटा,
क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है।

103तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुँह में मधु से भी मीठे हैं!
तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ,
इसलिए मैं सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ।

व्यवस्था का प्रकाश

नून

104


105तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।
106मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है
कि मैं तेरे धर्ममय नियमों के अनुसार चलूँगा।

107मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ; हे यहोवा, अपने वादे के अनुसार मुझे जिला।
108हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर,
और अपने नियमों को मुझे सिखा।

109मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है*, तो भी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
110दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है,
परन्तु मैं तेरे उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका।

111मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है।
मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है,
कि अन्त तक तेरी विधियों पर सदा चलता रहूँ।

व्यवस्था में सुरक्षा

सामेख

112


113मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
114तू मेरी आड़ और ढाल है;
मेरी आशा तेरे वचन पर है।

115हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ, कि मैं अपने परमेश्‍वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूँ!
116हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ,
और मेरी आशा को न तोड़!

117मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा, और निरन्तर तेरी विधियों की ओर चित्त लगाए रहूँगा!
118जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं,
उन सब को तू तुच्छ जानता है,
क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है।

119तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियों से प्रीति रखता हूँ।
तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है,
और मैं तेरे नियमों से डरता हूँ।

परमेश्‍वर की व्यवस्था को मानना

ऐन

120


121मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अत्याचार करनेवालों के हाथ में न छोड़।
122अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो,
ताकि अहंकारी मुझ पर अत्याचार न करने पाएँ।

123मेरी आँखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं।
124अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर,
और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।

125मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियों को समझूँ।
126वह समय आया है, कि यहोवा काम करे,
क्योंकि लोगों ने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है।

127इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ। इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ;
और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूँ।

व्यवस्था पर चलने की इच्छा

पे

128


129तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूँ।
130तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है*;
उससे निर्बुद्धि लोग समझ प्राप्त करते हैं।

131मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था।
132जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है,
वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर दया कर।

133मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे।
134मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले,
तब मैं तेरे उपदेशों को मानूँगा।

135अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे, और अपनी विधियाँ मुझे सिखा।
मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है,
क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।

व्यवस्था का न्याय

सांदे

136


137हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं। (भज. 145:17)
138तूने अपनी चितौनियों को
धर्म और पूरी सत्यता से कहा है।

139मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनों को भूल गए हैं।
140तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है,
इसलिए तेरा दास उसमें प्रीति रखता है।

141मैं छोटा और तुच्छ हूँ, तो भी मैं तेरे उपदेशों को नहीं भूलता।
142तेरा धर्म सदा का धर्म है,
और तेरी व्यवस्था सत्य है।

143मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूँ।
तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं;
तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूँ।

छुटकारे के लिये प्रार्थना

क़ाफ

144


145मैंने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन!
मैं तेरी विधियों को पकड़े रहूँगा।
146मैंने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर,
और मैं तेरी चितौनियों को माना करूँगा।

147मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनों पर थी।
148मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं,
कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूँ।

149अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपनी नियमों के रीति अनुसार मुझे जीवित कर।
150जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं;
वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं।

151हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएँ सत्य हैं।
बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ,
कि तूने उनकी नींव सदा के लिये डाली है।

सहायता के लिये विनती

रेश

152


153मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया।
154मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले;
अपने वादे के अनुसार मुझ को जिला।

155दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियों की सुधि नहीं रखते।
156हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है;
इसलिए अपने नियमों के अनुसार मुझे जिला।

157मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियों से नहीं हटता।
158मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ;
क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते।

159देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ! हे यहोवा, अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला।
तेरा सारा वचन सत्य ही है;
और तेरा एक-एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।

व्यवस्था के प्रति समर्पण

शीन

160


161हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों का भय मानता है*। (भज. 119:23)
162जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है,
वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूँ।

163झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूँ।
164तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन
सात बार तेरी स्तुति करता हूँ।

165तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।
166हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूँ;
और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूँ।

167मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ, और उनसे बहुत प्रीति रखता आया हूँ।
मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ,
क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है।

परमेश्‍वर से सहायता पाने की लालसा

ताव

168


169हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे!
170मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे;
तू अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले।

171मेरे मुँह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपनी विधियाँ सिखाता है।
172मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा,
क्योंकि तेरी सब आज्ञाएँ धर्ममय हैं।

173तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैंने तेरे उपदेशों को अपनाया है।
174हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ,
मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूँ।

175मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा, तेरे नियमों से मेरी सहायता हो।
176मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ;
तू अपने दास को ढूँढ़ ले,
क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।

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